चिंतन व परिचर्चा~
"अब बीएचयू में तनाव ..जिम्मेदार कौन "
.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राओं पर पुलिस लाठीचार्ज ने एक बार फिर हमारे शिक्षा परिसरों के माहौल और उसके प्रति शासन-प्रशासन तंत्र के रवैये पर गंभीर सवाल उठाये हैं।
एक छात्रा से सरेराह छेड़छाड़ की घटना पर छात्र आक्रोश से निपटने के निहायत संवेदनहीन और अदूरदर्शी रवैये के चलते ही इस प्रकरण की प्रतिक्रिया देश की राजधानी दिल्ली तक दिखायी दी।
चौंकाने वाली बात यह भी है कि बीएचयू के नाम से चर्चित और लोकप्रिय यह विश्वविद्यालय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में स्थित है, जो बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ नारे के लिए अपनी पीठ खुद थपथपाने का कोई भी मौका नहीं चूकते।
यह भी कि उत्तर प्रदेश में मोदी की ही पार्टी भाजपा की सरकार है, जिसकी कमान भी उन्हीं की पसंद योगी आदित्यनाथ के हाथों में है।
जाहिर है कि बीएचयू के कुलपति पद पर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भाजपा के चहेते गिरीश चंद्र त्रिपाठी विराजमान हैं। इसलिए इस प्रकरण के लगातार बिगड़ते जाने की जिम्मेदारी और जवाबदेही भी उन्हीं संगठनों-व्यक्तियों की बनती है, जो खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं।
बीएचयू के इस प्रकरण की शुरुआत एक छात्रा से कुछ बेखौफ लड़कों द्वारा सरेराह छेड़छाड़ से हुई थी। बेशक ऐसी घटनाएं हमारे समाज में अकसर कहीं न कहीं घटती रहती हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे शर्मनाक नहीं या उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।
जैसा कि इस घटना से आक्रोशित छात्राओं, और उनके सहपाठी छात्रों का भी, कहना है: ऐसी घटनाएं आम हैं। निश्चय ही इस स्थिति पर न सिर्फ बीएचयू के कुलपति, बल्कि पुलिस-प्रशासन को भी शर्मिंदा होना चाहिए, लेकिन उनकी उदासीनता और संवेदनहीनता का पता इसी से चल जाता है कि कुलपति ने खुद पीड़ित छात्रा से मिलना दूर, अपने आवास पर पहुंची छात्राओं से भी मिलने से इनकार कर दिया।
इतना ही नहीं, उन्होंने पुलिस बुलवा ली, जिसने अपनी आदत के मुताबिक बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया। यही नहीं, 1000 से अधिक छात्र-छात्राओं के विरुद्ध मुकदमे भी दर्ज किये गये हैं।
अगर ऐसे मामलों में भी कुलपति के पास छात्र-छात्राओं से मिलने तक का वक्त नहीं है, तब आखिर उनकी उपयोगिता ही क्या है?
प्रदर्शन और टकराव के दौरान पेट्रोल बमों के इस्तेमाल की बात कही जा रही है, अगर ऐसा हुआ तो यह भी विश्वविद्यालय प्रशासन पर ही सवालिया निशान है।
एक वक्त था कि शिक्षा परिसरों में पुलिस का प्रवेश संस्थानों की प्रतिष्ठा के विरुद्ध और गंभीर बात मानी जाती थी, लेकिन अब तो जैसे यह एक आम प्रक्रिया बनती जा रही है।
बीएचयू प्रकरण में गैर भाजपाई दलों और उनके छात्र संगठनों की सक्रियता किसी से छिपी नहीं है। कहा जा सकता है कि राजनीतिक खिलाड़ियों को कम से कम शिक्षा परिसरों को तो बख्श ही देना चाहिए, लेकिन इस खेल में शामिल तो सभी हैं, फिर यह उपदेश सिर्फ दूसरों को ही कैसे दिया जा सकता है।
"अब बीएचयू में तनाव ..जिम्मेदार कौन "
.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राओं पर पुलिस लाठीचार्ज ने एक बार फिर हमारे शिक्षा परिसरों के माहौल और उसके प्रति शासन-प्रशासन तंत्र के रवैये पर गंभीर सवाल उठाये हैं।
एक छात्रा से सरेराह छेड़छाड़ की घटना पर छात्र आक्रोश से निपटने के निहायत संवेदनहीन और अदूरदर्शी रवैये के चलते ही इस प्रकरण की प्रतिक्रिया देश की राजधानी दिल्ली तक दिखायी दी।
चौंकाने वाली बात यह भी है कि बीएचयू के नाम से चर्चित और लोकप्रिय यह विश्वविद्यालय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में स्थित है, जो बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ नारे के लिए अपनी पीठ खुद थपथपाने का कोई भी मौका नहीं चूकते।
यह भी कि उत्तर प्रदेश में मोदी की ही पार्टी भाजपा की सरकार है, जिसकी कमान भी उन्हीं की पसंद योगी आदित्यनाथ के हाथों में है।
जाहिर है कि बीएचयू के कुलपति पद पर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भाजपा के चहेते गिरीश चंद्र त्रिपाठी विराजमान हैं। इसलिए इस प्रकरण के लगातार बिगड़ते जाने की जिम्मेदारी और जवाबदेही भी उन्हीं संगठनों-व्यक्तियों की बनती है, जो खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं।
बीएचयू के इस प्रकरण की शुरुआत एक छात्रा से कुछ बेखौफ लड़कों द्वारा सरेराह छेड़छाड़ से हुई थी। बेशक ऐसी घटनाएं हमारे समाज में अकसर कहीं न कहीं घटती रहती हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे शर्मनाक नहीं या उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।
जैसा कि इस घटना से आक्रोशित छात्राओं, और उनके सहपाठी छात्रों का भी, कहना है: ऐसी घटनाएं आम हैं। निश्चय ही इस स्थिति पर न सिर्फ बीएचयू के कुलपति, बल्कि पुलिस-प्रशासन को भी शर्मिंदा होना चाहिए, लेकिन उनकी उदासीनता और संवेदनहीनता का पता इसी से चल जाता है कि कुलपति ने खुद पीड़ित छात्रा से मिलना दूर, अपने आवास पर पहुंची छात्राओं से भी मिलने से इनकार कर दिया।
इतना ही नहीं, उन्होंने पुलिस बुलवा ली, जिसने अपनी आदत के मुताबिक बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया। यही नहीं, 1000 से अधिक छात्र-छात्राओं के विरुद्ध मुकदमे भी दर्ज किये गये हैं।
अगर ऐसे मामलों में भी कुलपति के पास छात्र-छात्राओं से मिलने तक का वक्त नहीं है, तब आखिर उनकी उपयोगिता ही क्या है?
प्रदर्शन और टकराव के दौरान पेट्रोल बमों के इस्तेमाल की बात कही जा रही है, अगर ऐसा हुआ तो यह भी विश्वविद्यालय प्रशासन पर ही सवालिया निशान है।
एक वक्त था कि शिक्षा परिसरों में पुलिस का प्रवेश संस्थानों की प्रतिष्ठा के विरुद्ध और गंभीर बात मानी जाती थी, लेकिन अब तो जैसे यह एक आम प्रक्रिया बनती जा रही है।
बीएचयू प्रकरण में गैर भाजपाई दलों और उनके छात्र संगठनों की सक्रियता किसी से छिपी नहीं है। कहा जा सकता है कि राजनीतिक खिलाड़ियों को कम से कम शिक्षा परिसरों को तो बख्श ही देना चाहिए, लेकिन इस खेल में शामिल तो सभी हैं, फिर यह उपदेश सिर्फ दूसरों को ही कैसे दिया जा सकता है।
Comments
Post a Comment