मैं किसान हूँ भारत का और सबका अन्न-विधाता हूँ सब जन्म मुझी से पाते हैं सब मेरी पैदा खाते हैं अन्न-खाद्य सामग्री सब मैं तुमको देता आया हूँ फिर भी तुमने क्यों समझा है ज्यों मैं ग़ैरों का जाया हूँ ? सीमा पर गोली खाने को जो सीना आगे आता है उन सीनों में दिल मेरा है ये तुम्हें समझ नईं आता है ? शहरों में गाली सुनता हूँ गांवों में वोटर जनता हूँ जब कभी पुकार कोई आए तो 'सुन ओ गवांर !' भी सुनता हूँ अब ये क्या किया ? पाप है यह... कैसा पैशाचिक मानस है नीच नराधम कर्म है यह यह हत्या से भी बढ़कर है अधिग्रहण तो पहले होता था यह ग्रहण बलात-हरण है अब देखो ! किसान को मत छेड़ो वो पहले से ही शापित है यदि फुंकार उठी ज्वाला सिंहासन भस्म हुए समझो
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