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Showing posts from July 16, 2017

बाग बिगाड़े बांदरो (मारवाड़ी कविता)

_*मारवाड़ी कविता*_____ बाग बिगाङे बांदरो, सभा बिगाङे फूहङ । लालच बिगाङे दोस्ती करे केशर री धूङ ।। जीभड़ल्यां इमरत बसै, जीभड़ल्यां विष होय। बोलण सूं ई ठा पड़ै, कागा कोयल दोय।। चंदण की चिमठी भली, गाडो भलो न काठ। चातर तो एक ई भलो, मूरख भला न साठ।। गरज गैली बावली, जिण घर मांदा पूत । सावन घाले नी छाछङी, जेठां घाले दूध ।। पाडा बकरा बांदरा, चौथी चंचल नार । इतरा तो भूखा भला, धाया करे बोबाङ ।। भला मिनख ने भलो सूझे कबूतर ने सूझे कुओ । अमलदार ने एक ही सूझे किण गाँव मे कुण मुओ ।। 🙏🙏