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मैं भारत का किसान हूं

मैं किसान हूँ भारत का
और सबका अन्न-विधाता हूँ

सब जन्म मुझी से पाते हैं
सब मेरी पैदा खाते हैं
अन्न-खाद्य सामग्री सब
मैं तुमको देता आया हूँ
फिर भी तुमने क्यों समझा है
ज्यों मैं ग़ैरों का जाया हूँ ?

सीमा पर
गोली खाने को
जो सीना आगे आता है
उन सीनों में दिल मेरा है
ये तुम्हें समझ नईं आता है ?
शहरों में गाली सुनता हूँ
गांवों में वोटर जनता हूँ
जब कभी पुकार कोई आए तो
'सुन ओ गवांर !'
भी सुनता हूँ

अब ये क्या किया ?
पाप है यह...
कैसा पैशाचिक मानस है
नीच नराधम कर्म है यह
यह हत्या से भी बढ़कर है

अधिग्रहण तो पहले होता था
यह ग्रहण
बलात-हरण है अब

देखो ! किसान को मत छेड़ो
वो पहले से ही शापित है
यदि फुंकार उठी ज्वाला
सिंहासन भस्म हुए समझो






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